सत्ता की साझेदारी [Power Sharing] Class 10 NCERT Political science chapter 1 notes

Class 10 NCERT (राजनीतिक विज्ञान), चैप्टर 1 : सत्ता की साझेदारी

अगर आप क्लास 9 के सभी चैप्टर को पढ़ चुके हैं तो यह चैप्टर बहुत आसान लगेगा। खैर, मैं कोशिश करूंगा कि सभी चीजों को क्लियर करते जाऊं ।

कुछ शब्द जिनके अर्थ आपको अच्छे से पता होने चाहिए। खैर मैं कोशिश करूंगा कि इस चैप्टर में जो भी उलझे हुए शब्द हों उसके अर्थों को क्लियर कर दूं। 

1.लोकतंत्र :- इसका सीधा मतलब लोगो का शासन। पहले किसी राष्ट्र या राज्य में शासन करने के लिए एक राजा होता था, जिसे राजतंत्र कहा जाता है। राजा शासन व्यवस्था में खुद निर्णय लेता था हो सकता है वह निर्णय लोगों के हित में न हो। मतलब मनमाने ढंग से शासन करना। लेकिन लोकतंत्र में ऐसा बिल्कुल नहीं होता है। लोगों द्वारा निर्वाचित प्रत्याशी ही शासन करेंगे। और लोग जब चाहे उसे पद पद से मुक्त भी कर सकता है। मतलब लोगों के हाथ में शासन।

लेकिन अभी के समय में लोगतंत्र के भी अलग-अलग रूप नज़र आते हैं। जो देंखने में लोकतंत्र होता है लेकिन शासक की भूमिका तानाशाही होता है। इसका एक कारण कुछ लोगों को ये तानाशाही शासन अच्छा लगता है। और कुछ के लिए दुखदाई होता है।

2.लोकतांत्रिक :- लोकतांत्रिक शब्द लोकतंत्र से ही बना हुआ है। यह एक व्यवस्था है। जो एक तरह से लोगतंत्र को परिभाषित करता है। 
एक ऐसा तंत्र (व्यवस्था) जो सभी लोक (लोगों) से मिलकर बना हुआ हो। मतलब सभी लोगों ( अलग-अलग भाषा, जाति, वर्गों के लोग) से मिलकर बना हुआ हो। और कोई भी कार्य होता है तो सभी लोगों की सहमति से ही होता हो।

3.लोकतांत्रिक व्यवस्था :- ऐसा जरूरी नहीं है कि जिस- जिस देश में लोगतंत्र है सभी में एक समान लोकतांत्रिक व्यवस्था हो। जैसे भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था, अमेरिकी लोकतांत्रिक व्यवस्था इत्यादि। हरेक देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था उस देश के संविधान के द्वारा निर्धारित होता है।

4.एथनीक या जातीय :- ऐसा सामाजिक विभाजन जिसमें हर समूह अपनी-अपनी संस्कृति को अलग मानता है यानी, साझी संस्कृति पर आधारित सामाजिक विभाजन है।  किसी भी जातीय समूह के सभी सदस्य मानते हैं कि उनकी उत्पत्ति समान पूर्वजों से हुई है और इसी कारण उनकी शारीरिक बनावट और संस्कृति एक जैसी है । जरूरी नहीं कि ऐसे समूह के सदस्य किसी एक धर्म को मानने वाले हो या उनकी राष्ट्रीयता एक हो।

5. बहुसंख्यकवाद :- यह एक विचारधारा है, जिसकी मान्यता है कि अगर कोई समुदाय बहुसंख्यक है तो वह अपने मनचाहे ढंग से देश का शासन कर सकता है और इसके लिए वह अल्पसंख्यक समुदाय की जरूरत या इच्छाओं की अवहेलना कर सकता है। इसी तरह से जातिवाद शब्द भी परिभाषित होता है।

6.गृहयुद्ध :- इसका सीधा मतलब घर में युद्ध होता है। किसी देश में सरकार विरोधी समूह की हिंसक लड़ाई ऐसा रूप ले ले कि वही युद्ध अच्छा लगे तो उसे गृहयुद्ध कहते हैं।

7.सत्ता :- सत्ता का अर्थ शासन से होता है। लोगतंत्र में सत्ता (शासन)  किसी एक पार्टी या व्यक्ति के पास स्थाई नहीं रहता है। यह बदलते रहता है।

8. सत्ता की साझेदारी :- अगर शाब्दिक अर्थ देखे तो सत्ता का मतलब शासन होता है और साझेदारी का मतलब हिस्सा होता है। सत्ता की साझेदारी का सीधा मतलब यह होता है कि शासन सिर्फ एक व्यक्ति या एक राजनीतिक पार्टी नहीं करेगी।

अगर कोई डिसीजन लेना होगा तो सिर्फ चुनी हुई सरकार अकेले डिसीजन नहीं ले सकती है। इसमें न्यायपालिका, विधायिका, विपक्ष, मीडिया, लोगों का अलग-अलग ग्रुप, इत्यादि  सभी की सहमति होती है। या तो प्रत्यक्ष (दिखाकर) या अप्रत्यक्ष (बिना दिखाकर) सहमति होती है।


9. युक्तिपरक :- समझदारी का तर्क लाभ कर परिणामों पर जोर देता है। लाभ हानि का सावधानीपूर्वक हिसाब लगा कर लिया गया फैसला। पूरी तरह से नैतिकता पर आधारित फैसला अक्सर इसके उलट होता है।

10. नैतिक तर्क :- सत्ता के बंटवारे के अंतर्गत महत्व को बताता है।

न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका इन तीनों के बारे में पढ़ चुके होंगे । यह तीनों किसी के अंदर में काम नहीं करता है। सभी स्वतंत्र है। और एक दूसरे के कार्यों पर नज़र रखते हैं।

इनमें से किसी एक के पास ज्यादा शक्ति या कम शक्ति नहीं है। सभी अपने क्षेत्र में स्वतंत्र है और स्वतंत्रता तरीका से काम करता है।

  • लोकतांत्रिक व्यवस्था में सारी ताकत किसी एक अंग (न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका) तक सीमित नहीं होती है। 
  • न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच पूरी समझ के साथ सत्ता को विकेन्द्रित (अलग-अलग) कर देना लोकतंत्र के कामकाज के लिये महत्वपूर्ण है।

● किसी भी लोकतंत्र में सत्ता के बंटवारे की जरूरत क्यों होती है ?

यहाँ दो देशों के उदाहरण द्वारा समझाया गया है। ताकि आप समझ सकें कि लोकतंत्र में सत्ता का बंटवारा क्यों जरूरी है। पहला उदाहरण बेल्जियम की है और दूसरा श्रीलंका की।

बेल्जियम

  • बेल्जियम यूरोप महादेश का छोटा सा देश है। इसका क्षेत्रफल अपने हरियाणा से भी छोटे होंगे।
  • इसकी आबादी एक करोड़ से थोड़ी अधिक है। मतलब हरियाणा की आबादी का आधा।
  • इस देश में समाज की जातीय बुनावट बहुत जटिल है। कुल आबादी का 59 प्रतिशत फ्लेमिश इलाके में रहता है और डच बोलता है।
  • 40 प्रतिशत लोग वेलोनिया क्षेत्र में रहते हैं और फ्रेंच बोलते हैं।
  • 1 प्रतिशत लोग जर्मन बोलते हैं।
  • राजधानी ब्रुसेल्स के 80 प्रतिशत लोग फ्रेंच बोलते हैं। 20 प्रतिशत डच बोलते हैं।
  • अल्पसंख्यक होने के बाबजूद फ्रेंच लोग तुलनात्मक रूप से ज्यादा समृद्ध और ताकतवर रहें हैं।
  • बहुत बाद में जाकर आर्थिक विकास और शिक्षा का लाभ पाने वाले डच भाषी लोगों को इस स्थिति से नाराज़गी थी। इसके चलते 1950 और 1960 के दशक में फ्रेंच और डच बोलने वाले समूह के बीच तनाव बढ़ने लगा। इन दोनों समुदाय के टकराव का सबसे तीखा रूप ब्रुसेल्स में दिखा।
  • डच बोलने वाले लोगो संख्या के हिसाब से अपेक्षाकृत ज़्यादा थे लेकिन धन और समृद्धि के मामले में कमजोर और अल्पमत में थे। इस स्थिति में डच भाषी लोग अपनो बड़ी संख्या के बल पर फ्रेंच-भाषी और जर्मन-भाषी लोगों पर अपनी इच्छाएँ थोप सकते थे।
  • और आगे क्या-क्या हो सकता था आप खुद सोच सकते हैं। लेकिन यहाँ के लोग अपने क्षेत्रीय विविधता को स्वीकार किया। और 1970 और 1993 के बीच अपने संविधान में चार संसोधन सिर्फ इस बात के लिए किए कि देश में रहने वाले किसी भी आदमी को बेगानापन का अहसास न हो और सभी मिलजुलकर रह सकें।
    • केंद्रीय सरकार में 10 और फ्रेंच भाषी मंत्रियों की संख्या समान रहेगी। कुछ विशेष कानून तभी बन सकते हैं जब दोनों भाषाई समूह के सांसदों का बहुमत उसके पक्ष में हो।
    • केंद्र सरकार की अनेक शक्तियां देश के दो ही लाखों की क्षेत्रीय सरकारों को सुपुर्द कर दी गई हैं यानी कि राज्य सरकारी केंद्रीय सरकार के अधीन नहीं हैं।
    • ब्लू सेल्स में अलग सरकार है और इसमें दोनों समुदायों का समान प्रतिनिधित्व है। फ्रेंच भाषी लोगों ने ब्रुसेल्स समें समान प्रतिनिधित्व के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया क्योंकि 10 भाषी लोगों ने केंद्रीय सरकारी में बराबरी का प्रतिनिधित्व स्वीकार किया था।
    • केंद्रीय और राज्य सरकारों के अलावा यहां एक तीसरे स्तर की सरकार भी काम करती है यानी सामुदायिक सरकार। इस सरकार का चुनाव एक ही भाषा बोलने वाले लोग करते हैं। फ्रेंच और जर्मन बोलने वाले समुदायों के लोग चाहे वे जहां भी रहते हों, इस सामुदायिक सरकार को चुनते हैं। इस सरकार को संस्कृति, शिक्षा और भाषा जैसे मसलों पर फ़ैसले लेने का अधिकार है।

बेल्जियम का मॉडल कुछ जटिल लग सकता है। और यह व्यवस्था बेहद सफल रही है।

श्रीलंका

चलिए अब श्रीलंका के सामाजिक संरचना को समझते हैं। और यहाँ क्या-क्या उथल-पुथल हुआ।

  • श्रीलंका एक दूधिया देश है जो तमिलनाडु के दक्षिणी तट से कुछ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
  •  इसकी आबादी करीब 2 करोड़ है यानी हरियाणा के बराबर दक्षिण एशिया के अन्य देशों की तरह श्रीलंका की आबादी में भी कई जातीय समूह के लोग हैं। 
  • सबसे प्रमुख सामाजिक समूह सिंहलियों का है जिनकी आबादी कुल जनसंख्या की 74 फीसदी है।
  • फिर तमिलों का नंबर आता है जिनकी आबादी कुल जनसंख्या का 18 फ़ीसदी है। 
  • तमिलों में भी दो समूह है श्रीलंकाई मूल के तमिल (13 प्रतिशत) और हिंदुस्तानी तमिल जो औपनिवेशिक शासन काल में भवनों में काम करने के लिए भारत से लाए गए लोगों की संतान हैं। 
  • अधिकतर सिंह निवासी लोग बौद्ध हैं जबकि तमिल भाषी लोगों में कुछ हिंदू हैं और कुछ मुसलमान। 
  • श्रीलंका की आबादी में ईसाई लोगों का हिस्सा 7 फ़ीसदी है और वे सिंहली और तमिल दोनों भाषाएं बोलते हैं।
  • सन 1948 में श्रीलंका स्वतंत्र राष्ट्र बना। 
  • सिंहली समुदाय के नेताओं ने अपनी बहू संख्या के बल पर शासन का प्रभुत्व जमाना चाहा।
  • इस वजह से लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार ने (अपनी राजनीतिक फायदा के लिए) सिंहली समुदाय की प्रभुता कायम करने के लिए अपनी बहुसंख्यक परस्ती के तहत कई कदम उठाए।
  • 1956 में एक कानून बनाया गया जिसके तहत तमिल को दरकिनार करके सिंगली को एकमात्र राजभाषा घोषित कर दिया गया ।
  • विश्वविद्यालयों और सरकारी नौकरियों में सिंधियों को प्राथमिकता देने की नीति भी चली।
  • नए संविधान में यह प्रावधान भी किया गया कि सरकार बोध मत को संरक्षण और बढ़ावा देगी।
  • एक-एक करके आए इन सरकारी भाइयों ने श्रीलंकाई तमिलों की नाराजगी और शासन को लेकर उनमें बेगानापन बढ़ाया।
  • परिणाम यह हुआ कि तमिल और सिंहली समुदायों के बीच संबंध बिगड़ते चले गए।
  • श्रीलंकाई तमिलों ने अपनी राजनीतिक पार्टियां बनाई और तनी को राजभाषा बनाने क्षेत्रीय स्वायत्तता हासिल करने तथा शिक्षा और रोजगार में समान अवसरों की मांग को लेकर संघर्ष किया। लेकिन तमिलों की आबादी वाले इलाके की स्वायत्तता की उनकी मांगों को लगातार नकारा गया। 1980 के दशक तक उत्तर पूर्वी श्रीलंका में स्वतंत्र तमिल सरकार बनाने की मांग को लेकर अनेक राजनीतिक संगठन बने।
  • श्रीलंका में दो समुदायों के बीच पारस्परिक अविश्वास ने बड़े टकराव का रूप ले लिया। यह टकरा गृह युद्ध परिणित हुआ।
  • परिणाम स्वरूप दोनों पक्ष के हजारों लोग मारे जा चुके हैं और मेरा मन एक परिवार अपने मुल्क से भाग का शरणार्थी बन गए हैं इससे भी कई गुना ज्यादा लोगों की रोजी-रोटी चौपट हो गई है।

● सत्ता की साझेदारी क्यों जरूरी है ?

  • सत्ता का बंटवारा ठीक है क्योंकि इससे विभिन्न सामाजिक संभोग के बीच टकराव का अंदेशा कम हो जाता है। क्योंकि सामाजिक टकराव आगे बढ़कर अक्सर ही हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता का रूप ले लेता है। इसलिए सत्ता में हिस्सा देना राजनीतिक व्यवस्था के स्थायित्व के लिए अच्छा है।
  • सत्ता की साझेदारी दरअसल लोकतंत्र की आत्मा है। लोकतंत्र का मतलब ही होता है कि जो लोग इस शासन व्यवस्था के अंतर्गत हैं उनके बीच सकता को बांटा जाए और यह लोग इसी ढर्रे से रहे। इसलिए वैध सरकार वही है जिसमें अपनी भागीदारी के माध्यम से सभी समूह शासन व्यवस्था से जोड़ते हैं।

● सत्ता की साझेदारी के रूप

लोकतंत्र का एक बुनियादी सिद्धांत है कि जनता ही सारी राजनीतिक शक्ति का स्रोत है। इसमें लोग स्व-शासन की संस्थाओं के माध्यम से अपना शासन चलाते हैं। 

एक अच्छे लोकतांत्रिक शासन में समाज के विभिन्न समूहों और उनके विचारों को उचित सम्मान दिया जाता है और सार्वजनिक नीतियां तय करने में सबकी बातें शामिल होती हैं इसलिए उसी लोकतांत्रिक शासन को अच्छा माना जाता है जिसमें ज्यादा से ज्यादा नागरिकों और राजनीतिक सत्ता में हिस्सेदार बनाया जाए।

  • शासन के विभिन्न अंग, जैसे विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सत्ता का बंटवारा रहता है। इसे हम सत्ता का क्षैतिज वितरण कहेंगे क्योंकि इसमें सरकार के विभिन्न अंग एक ही स्तर पर रहकर अपनी- अपनी शक्ति का उपयोग करते हैं। ऐसे बंटवारे से यह सुनिश्चित हो जाता है कि कोई भी एक अंग सत्ता का असीमित उपयोग नहीं कर सकता। हर अंग दूसरे पर अंकुश रखता है। हमारे देश में कार्यपालिका सत्ता का उपयोग करती जरूर है पर यह संसद के अधीन कार्य करती है; न्यायपालिका की नियुक्ति कार्यपालिका करती है पर न्यायपालिका ही कार्यपालिका और विधायिका द्वारा बनाये कानूनों पर अंकुश रखती ही। इस व्यवस्था को ‘नियंत्रक और संतुलन की व्यवस्था‘ भी कहते हैं।
  • सरकार के बीच विभिन्न स्तरों पर सत्ता का बँटवारा हो सकता है जैसे पूरे देश के लिए एक सामान्य सरकार हो और फिर प्रांत क्षेत्रीय स्तर पर अलग-अलग सरकार रहे। पूरे देश के लिए बनने वाली ऐसी सामान्य सरकार को अक्सर संघ या केंद्र सरकार कहते हैं, प्रांतीय या क्षेत्रीय स्तर की सरकारों को हर जगह अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है भारत में हम इन्हें हैं राज्य सरकार कहते हैं। कई देशों में प्रांतीय या क्षेत्रीय सरकारी नहीं है। संविधान में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता का बंटवारा किस तरह होगा। राज्य सरकारों से नीचे के स्तर की सरकारों के लिए भी ऐसी ही व्यवस्था हो सकती है। नगरपालिका और पंचायतें ऐसी ही इकाइयां हैं। उच्चतर और निम्नतर स्तर की सरकारों के बीच सत्ता के ऐसे बँटवारे को ऊर्ध्वाधर वितरण कहा जाता है।
  • सत्ता का बंटवारा विभिन्न सामाजिक समूहों, मसलन, भाषाई और धार्मिक समूहों के बीच भी हो सकता है। बेल्जियम में सामुदायिक सरकार इस व्यवस्था का एक अच्छा उदाहरण है। कुछ देशों के संविधान और कानून में इस बात का प्रावधान है कि सामाजिक रुप से कमजोर समुदाय और महिलाओं को विधायिका और प्रशासन में हिस्सेदारी दी जाए। इस तरह की व्यवस्था विधायिका और प्रशासन में अलग-अलग सामाजिक समूह को हिस्सेदारी देने के लिए की जाती है ताकि लोग खुद को शासन से अलग न समझने लगे।
  • सत्ता के बँटवारे का एक रुप हम विभिन्न प्रकार के दबाव समूह और आंदोलनों द्वारा शासन को प्रभावित और नियंत्रित करने के तरीके में भी लक्ष्य कर सकते हैं। लोकतंत्र में लोगों के सामने सत्ता के दावेदारों के बीच चुनाव का विकल्प जरूर रहना चाहिए। लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में यह विकल्प विभिन्न पार्टियों के रूप में उपलब्ध होता है। पार्टियां सत्ता के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा करती है। पार्टियों की यह आपसी प्रतिद्वंद्विता ही इस बात को सुनिश्चित कर देती है कि सत्ता एक व्यक्ति या समूह के हाथ में ना रहे। लोकतंत्र में हम व्यापारी, उद्योगपति, किसान और औद्योगिक मजदूर जैसे कई संगठित हित समूह को भी सक्रिय देखते हैं। सरकार की विभिन्न समितियों में सीधी भागीदारी करके या नीतियों पर अपने सदस्य वर्ग के लाभ के लिए दबाव बनाकर यह समूह भी सत्ता में भागीदारी करते हैं।

शब्द स्पष्टीकरण

  • सरकार के विभिन्न अंगों के बीच सत्ता का बंटवारा – संघीय सरकार
  • विभिन्न स्तरों की सरकारों के बीच अधिकारों का बंटवारा – अधिकारों का वितरण
  • विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच सत्ता की साझेदारी – सामुदायिक सरकार
  • दो या अधिक दलों के बीच सत्ता की साझेदारी – गठबंधन सरकार
Class 10th Political Science Chapter

1.सत्ता की साझेदारी [ Power Sharing]

2.संघवाद [ Federalism ]

3.लोकतंत्र और विविधता [ Democracy and Diversity]

4.जाति, धर्म और लैंगिक मसले [ Gender, Religion and Cast ]

5.जन-संघर्ष और आंदोलन [Popular Struggles and Movements]

6.राजनीतिक दल [ Political Parties ]

7.लोकतंत्र के परिणाम [ Outcomes of Democracy ]

8.लोकतंत्र की चुनौतियां [ Challenges to Democracy ]

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *