लाभ और हानि (Profit and Loss) Fundamental Maths

Fundamental Maths (बेसिक गणित) में लाभ और हानि (Profit and Loss ) चैप्टर अलग ही स्थान रखता है।

अगर आप कोई बिज़नेस कर रहें हैं तो इस चैप्टर का ज्ञान होना आवश्यक है। अगर कोई प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कर रहें हैं तब भी यह चैप्टर बहुत मायने रखता है। अगर आप लाभ-हानि को अच्छी तरह से समझते हैं तो बहुत सारे ट्रिक वाले सवाल चुटकियों में हल हो जाएंगे।

Profit and loss

इस चैप्टर को पढ़ने से पहले प्रतिशत वाले चैप्टर को पढ़ ले तो आपके लिए अच्छा होगा। (भिन्न ,अनुपात और प्रतिशत )

सबसे पहले कुछ शब्द हैं जिसका मतलब आपको पता होना चाहिए। मैंने सभी शब्दों को उसके परिभाषा के अनुसार नीचे लिख दिया है।

क्रय-मूल्य (Cost Price) :-

जैसा कि नाम से स्पष्ट है, किसी वस्तु को जिस मूल्य पर आप ख़रीदते हैं। उसी मूल्य को क्रय-मूल्य कहा जाता है।

अगर किसी वस्तु का मूल्य 100 रुपैया है लेकिन जब आप ख़रीदते हैं तो 20 रुपैया का टैक्स देना पड़ता है। तो उस वस्तु का क्रय-मूल्य 120 रुपैया होगा। किसी भी वस्तु को खरीदने के बाद जो भी उस वस्तु पर खर्च आती है वह भी क्रय-मूल्य में जोड़ा जाता है।

क्रय मूल्य = विक्रय मूल्य – लाभ

क्रय मूल्य = विक्रय मूल्य + हानि

Fundamental Maths Topic (बेसिक गणित का टॉपिक )

1.संख्या और अंक (Number and Digit)


2. संख्या रेखा (Number Line)


3.संख्याओं की परिभाषा (Definition of Numbers)


4.विभाज्यता का नियम (Rule of Divisibility)


5.भारतीय और अंतरराष्ट्रीय संख्या पद्धति (Indian and International Number System )

6.भिन्न ,अनुपात और प्रतिशत (Fraction, Ratio and Percentage)

7.ऐकिक नियम (Unitary method)

8.अभाज्य गुणनखंड, गुणज, अपवर्तक, समापवर्तक, अपवर्त्य, समापवर्त्य, HCF, LCM

9.घातांक और घात (Exponent and Power)


10.लाभ और हानि (Profit and Loss)

11.दशमलव (Decimals)

12.आकृतियों, कोणों, रेखाओं (Shapes, Angles, Lines )

13.वर्गमूल (Square root)

14.घनमूल (cube root)


15.प्राकृतिक संख्या (Natural Number)

16.पूर्ण संख्या ( Whole Number)

17.पूर्णांक (Integers)

18.क्षेत्रमिति (Mensuration)

19.अपवर्तक (Factor)

20.अपवर्त्य (Multiple)

21.गुणनखंड (Factorisation)

22.पूर्ण संख्या और पूर्णांक में अंतर

23.प्रतिशत (Percentage)

विक्रय-मूल्य (Selling Price) :-

किसी वस्तु की जो मूल्य पर बेचते हैं वह मूल्य विक्रय-मूल्य कहलाता है ।

विक्रय मूल्य = क्रय मूल्य + लाभ

विक्रय मूल्य = क्रय मूल्य – हानि

लाभ (Profit) :-

अगर किसी वस्तु को 120 रुपैया में खरीदे उसके बाद उस वस्तु पर 10 रुपैया का खर्च होगा। उसे 150 रुपैया पर बेच दिया गया । तो क्या आप बात सकते हैं कि कितना लाभ हुआ। मेरे अनुसार 20 रुपैया का लाभ हुआ। इसी को लाभ कहते हैं।

लाभ निकालने के लिए विक्रय-मूल्य में से क्रय-मूल्य को घटा दिया जाता है।

लाभ = विक्रयमूल्य – क्रयमूल्य

हानि (Loss) :-

अगर किसी वस्तु को 100 रुपैया खरीदा और 80 रुपैया में बेच दिया गया तो उसे 20 रुपैया का हानि हुआ। हानि को घाटा भी कहा जाता है। हानि निकालने के लिए क्रय-मूल्य में से विक्रय मूल्य को घटाया जाता है।

हानि = क्रय मूल्य – विक्रय मूल्य

लाभ प्रतिशत (Profit Percentage) :-

जो लाभ होता है उसको प्रतिशत में कन्वर्ट कर दीजिए । हो जाएगा लाभ प्रतिशत।

जैसे :- 720 रुपैया वाले (क्रय मूल्य) समान पर 200 रुपैया का लाभ लेता है। तो 100 रुपैया वाले समान पर कितना लाभ होगा यही लाभ प्रतिशत होता है। इसे ऐकिक नियम से भी बनाया जा सकता है और उसे सूत्र की मदद से भी बनाया जा सकता है।

  • अगर सूत्र की मदद से लाभ प्रतिशत निकलते हैं तो आपके सवाल में दो डेटा रहना ही चाहिए । पहला क्रय-मूल्य और दूसरा लाभ । अगर ये दोनों नहीं है तो सबसे पहले क्रय-मूल्य और लाभ निकले उसके बाद ही लाभ प्रतिशत निकाल सकते हैं। लाभ प्रतिशत = लाभ ÷ क्रयमूल्य × 100
  • ऐकिक नियम से भी निकाल सकते हैं। 720 रुपैया के समान में 200 रुपैया का लाभ होता है तो 100 रुपैया के समान में कितना लाभ होगा ? मतलब 100 पर निकाल लीजिए तो हो जाएगा।

हानि प्रतिशत (Loss Percentage) :-

लाभ प्रतिशत के जैसा ही हानि प्रतिशत निकाला जाता है। सिर्फ जहाँ लाभ है वहाँ हानि होगा। इसका सूत्र होता है। हानि प्रतिशत = हानि ÷ क्रयमूल्य × 100

बीजक (Invoice) :-

जब कोई व्यापारी अपने खरीददार को बेचे गए माल का परिणाम, उसका विवरण, मूल्य, बिक्री कर, पैकेजिंग खर्च, भेजने का खर्च आदि लिख कर एक ब्यौरा देता है तो उस ब्यौरों को बीजक (Invoice) कहा जाता है।

बट्टा (Discount) :-

अगर आप बाजार जाते होंगे, मॉल जाते होंगे या ऑनलाइन कोई प्रोडक्ट खरीदते होंगे तो उस प्रोडक्ट पर 70%,50% ,40% इत्यादि डिस्काउंट लिखा रहता है। क्या आप इसका मतलब समझते हैं। अगर हां, तो इसका मतलब बट्टा (Discount) समझते हैं। अगर नहीं तो मैं आपको समझा देता हूँ।

जैसे : किसी फ़ोन का प्राइस 50000 रुपैया है। लेकिन सेल में कंपनी 70% Discount पर बेच रही है तो मतलब इस फ़ोन को 50000 – 50000×70÷100 = 50000-35000 = 15000 . इसका मतलब 50000 रुपैया वाले फ़ोन सिर्फ 15000 में मिल रहा है। इसी को डिस्काउंट कहते हैं। किसी प्रोडक्ट पर घाटे का डिस्काउंट लगभग ना के बराबर दिया जाता है।

70 % discount (बट्टा) का मतलब होता है 100 रुपैया में 70 रुपैया का छूट । इसी तरह से अगर 25% बट्टा है तो इसका मतलब होता है। 100 में 25 रुपैया का छूट ।

अगर किसी रेडियो का मूल्य 500 रुपैया है और कंपनी 30 ℅ छूट (बट्टा) दे रही है तो रेडियो का क्या मूल्य होगा? आसान है। कंपनी 100 रुपैया के रेडियो के मूल्य में 30 रुपैया का छूट दे रही है। मतलब इस रेडियो को खरीदने के लिए हमें 5 एक सौ रुपैया का नोट चुकाना था लेकिन अब पांच 30 रुपैया (150) कम देना होगा । मतलब अब रेडियो के लिए 500-150 =350 रुपैया देना होगा।

बट्टा का भी सूत्र होता है। बट्टा = अंकित मूल्य × बट्टा दर ÷100

उदाहरण :- किस फ़ोन का अंकित मूल्य 15000 रुपैया है। कंपनी की तरफ से 20℅ बट्टा दिया जा रहा है तो कितना बट्टा होगा और फ़ोन का विक्रय-मूल्य क्या होगा ?

हल : सूत्र से, बट्टा = अंकित मूल्य × बट्टा प्रतिशत ÷100

बट्टा = 15000 × 20÷100 =1500×2 = 3000

विक्रय मूल्य = 15000-3000=12000

अंकित मूल्य (Market Price) :-

जैसा कि नाम से ही पता है अंकित का मतलब होता है लिखा हुआ। जो प्राइस किसी प्रोडक्ट के बॉक्स पर लिखा रहता है वह अंकित मूल्य कहा जाता है।

नकद बट्टा (Cash Discount) :-

अगर खुदरा व्यापारी थोक व्यापारी को नियत समय के अंदर बीजक की राशि का भुगतान (payment) करता है तो उसे सामान्य बट्टे के अतिरिक्त कुछ छूट दी जाती है जिसे नकद बट्टा कहा जाता है।

फुटकर बट्टा (Retail Discount) :-

कभी-कभी खुदरा व्यापारी बिक्री बढ़ाने के लिए या माल के पुराने हो जाने या खराब हो जाने के कारण माल को कम दाम पर बेचता है। अंकित मूल्य से जितना कम दाम पर बेचता है वह खुदरा या फुटकर बट्टा कहलाता है। फुटकर बट्टा को अंकित मूल्य के रूप में व्यक्त किया जाता है।

क्रमिक बट्टा (Successive Discount) :-

जब किसी माल पर दो या दो से अधिक बार बट्टा दिया जाता है तो वह क्रमिक बट्टा या बट्टा श्रेणी कहलाता है ।

स्टॉक पूँजी (Capital stock) :-

उद्योग चलाने के लिए कंपनी को जितने धन की आवश्यकता होती है यानी निवेश (Investment) की आवश्यकता होती है उसे उसकी स्टॉक पूंजी या पूंजी कहते हैं।

शेयर (Share) :-

स्टॉक पूंजी को समान मूल के बहुत से भागों में बांट दी जाती है प्रत्येक भाग शेयर या स्टॉक कहलाता है ।

कंपनी विज्ञापन देकर जनता से अनुरोध करती है कि वह शेयर खरीदें और शेयरधारी (Share Holder) बने शेयर खरीदने पर प्रत्येक शेयर धारी को एक स्टॉक सर्टिफिकेट मिलता है जिसमें कंपनी में उसके शेयरों की संख्या लिखी होती है शेयर की खरीद सीधे कंपनी से या दलाल (Broker) के द्वारा की जा सकती है शेयर की खरीद बिक्री जिस बाजार में की जाती है उसे सराफा (Stock Exchange) कहते हैं।

लाभांश (Divident) :-

एक नियत समय के बाद कंपनी को जो लाभ होता है उसे शेयरों की संख्या के अनुपात में शेयर धारियों में बांट दिया जाता है जिसे लाभांश कहते हैं साधारण सा लाभांश वार्षिक या छमाही या तिमाही होता है

ब्याज (Interest) :-

जब कोई व्यक्ति या कोई वित्तीय संस्थान ऋण देता है । उस ऋण के अलावा भी रुपैया चुकाना पड़ता है। उसी रुपैया को ब्याज कहा जाता है। जैसे आप किसी से 500 रुपैया 3 महीना के लिए हैं। आप सोचिए कोई व्यक्ति आपको 500 रुपैया क्यों देगा अगर उसे कुछ लाभ होगा तो आपको वह दे सकता है। वह व्यक्ति आपसे कहता है मैं हरेक महीना 100 रुपैया के अलावा 5 रुपैया लूंगा। इसका मतलब है ब्याज की दर 5 रखा है। अगर आप 500 रुपैया एक महीना रखते हैं तो आपका ब्याज 25 रुपैया होगा। अगर तीन महीना रखते हैं तो 75 रुपैया ब्याज होगा। तीन महीना के बाद उस आदमी को आप 500+ 75 = 575 रुपैया चुकाना पड़ेगा । मतलब यहाँ 75 रुपैया ब्याज हुआ।

ऋणदाता (Lender) :- जिससे आप ऋण (उधार) लेते हैं वह ऋणदाता कहलाता है।

मूलधन (Principal) :-

जो राशि आप किसी से कर्ज लेते हैं उसी राशि को मूलधन कहते हैं। इसे P से डिनोट करते हैं।

मिश्रधन (Amount) :-

मिश्रधन उस धन को कहा जाता है जो आपको सबसे लास्ट में दिया जाता है। मतलब मूलधन और ब्याज को जोड़ कर जो भी राशि होती है वैसे मिश्रधन कहा जाता है।

ब्याज की दर (Rate of Interest) :-

जिस दर पर ब्याज दिया जाता है। 100 को आधार माना जाता है। जैसे 5% दर का मतलब हुआ 100 रुपैया में 5 रुपैया ।

साधारण ब्याज (Simple Interest) :-

साधारण ब्याज निकालने के लिए मूलधन, समय और दर को गुना कर दिया जाता है और इन में 100 भाग दे दिया जाता है । साधारण ब्याज में ब्याज पर ब्याज नहीं लिया जाता है।

चक्रवृद्धि ब्याज (Compount Interest) :-

चक्रवृद्धि ब्याज एक तेरा का साधारण ब्याज ही है । यदि किसी निश्चित अवधि के बाद ब्याज को मूलधन में जोड़ दिया जाए और फिर प्राप्त मिश्रधन पर ब्याज लगाया जाए तो इस प्रकार प्राप्त ब्याज को चक्रवृद्धि ब्याज कहते हैं चक्रवृद्धि ब्याज में एक निश्चित अवधि के बाद मूलधन बदलता रहता है

चक्रवृद्धि मिश्रधन (Compount Amount) :-

पहली अवधि का मिश्रधन दूसरी अवधि के लिए मूलधन का काम करता है इसी प्रकार दूसरी अवधि की समाप्ति पर प्राप्त मिश्रधन अगली अवधि के लिए मूलधन का काम करता है इस प्रक्रिया में अंतिम मिश्रधन को चक्रवृद्धि मिश्रधन कहते हैं।

रूपांतरण अवधि (Coversion Period) :-

चक्रवृद्धि ब्याज में एक निश्चित भी आज अवधि से दूसरे ब्याज अवधि के समय को रूपांतरण अवधि कहते हैं । यदि समय 3 वर्ष हो तो 3 वर्ष में तीन रूपांतरण अवधि होगी।

बैंक-जमा पूँजी (Bank Deposits) :-

किसी व्यक्ति के पास आवश्यकता से अधिक रुपैया हो तो उसे बचत करने के लिए सुरक्षा की दृष्टि से बैंक या डाकघर में जमा कर देता है और वह जमा करने का अलग-अलग नियम होता है जैसे बचत खाता अवधि जमा अल्पावधि जमा आवर्ती जमा तो जो रुपैया बैंक में या डाकघर में या कहीं और सुरक्षित स्थान पर जमा रहता है उसे बैंक जमा पूंजी कहते हैं।

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